मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

                                  झूठ है रूस में गीता पर प्रतिबन्ध की बात :
                                    मिडिया की लापरवाही या शरारत ?

हिन्दुस्तानी मिडिया की शरारत है या लापरवाही जिसकी वज़ह से देश में भारत के चिरपरिचित मित्र देश रूस के विरुद्ध जनमत बनाने की कोशिश की गयी है. किसी झूठ को सौ बार कहकर सच बनाने के गोयबल्सी जतन के चलते अमरीका परस्त कार्पोरेट घरानों के भाड़े के चैनल और अखबारों ने जानबूझ कर यह शरारत की है.मामले के तथ्य यह हैं कि न तो रुसी सरकार ने श्रीमद गीता पर प्रतिबन्ध लगाया है और न ही वहां की सरकार के पास ऐसे किसी प्रतिबन्ध का कोई प्रस्ताब लंबित है . रूस की एक कस्बाई अदालत में एक कट्टरपंथी ईसाई ने श्रीमद भागवत गीता के विरोध में नहीं बल्कि इस्कान के प्रभुपाद जी द्वारा लिखित गीता के रुसी अनुवाद पर प्रतिबन्ध के लिए एक पिटीशन दाखिल किया है जिस पर वहां की अदालत को निर्णय देना है .प्रभुपाद की गीता पर उस कट्टरपंथी ईसाई को कुछ आपत्तियां हो सकती हें और रूस का नागरिक होने के नाते उसे हक है कि वह अदालत में कोई दावा पेश कर सके .इसमे रुसी समाज या रुसी सरकार की कोई भूमिका नहीं है .अदलत ने निर्णय के लिए अगली २८ तारीख डालदी है .इस्कान को इसकी अपील का अधिकार होगा .अदालत में रुसी सरकार ने अपने पक्ष में प्रतिबन्ध का समर्थन नहीं किया है .ऐसी स्तिथि में कोई संभावना नहीं है कि रूस में गीता जी तो क्या प्रभुपाद की गीता पर भी कोई प्रतिबन्ध लग सके . तथापि हमारे मिडिया ने बेईमानी पूर्वक भारत -रूस संबंधों को नुकसान पहुचाने के लिए इस झूठ का प्रचार किया है कि रूस में गीता जी पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है .
आज शाम करीब ५ बजे ऍफ़ एम् ९३.५० पर एंकर ने श्रोता से प्रश्न किया कि किस देश में श्रीमद भगवत गीता पर प्रतिबन्ध लगाया है ? बिकल्प दिया गया A. रूस B.जापान . श्रोता ने उत्तर दिया -रूस .एंकर ने उसे बिलकुल ठीक कहा .कई चैनलोने दिन में कई बार प्रचारित किया कि रूस में गीता पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है .उन्होंने नेताओं के साक्षात्कार लिए , लोगों को उकसाकर रुसी कोंसुलेट के आगे प्रदर्शन करा दिया और आम हिन्दुस्तानी में रूस के लिए गुस्सा पैदा किया . हम भारत के लोग रोज देखते हैं कि नागरिक अपने अधिकारों के तहत तमाम उलटी सीधी बातों पर रिट दाखिल करते रहते है .इसी तरह रूस के एक नागरिक ने अपनी सांप्रदायिक सोच के तहत प्रभुपाद की गीता के रुसी संसकरण पर प्रतिबन्ध के लिए पिटीशन फाइल की है जिससे रूस या रूस की सरकार का कोई लेना दें नहीं है .तथापि हमारे मिडिया ने इरादतन देश में झूठ का प्रचार किया और मित्र देश के प्रति भावनाएं भड़काई है तो हमारा फर्ज बनता है कि हमारी सरकार ऐसे अखबारों और चैनलों पर लगाम लगाये जो हमारी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने की कुचेष्ठा कर रहे हें .
--मधुवन दत्त चतुर्वेदी madhuvandutt@yahooo.com http://indiancommunist.blogspot.com/

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

स्वतंत्र चिंतन बनाये




महात्मा गाँधी ने बार बार अपने संपादकीयों में इस बात पर बल दिया था कि  संपादक  पाठको  की स्वतन्त्र चिंतन की प्रवृत्ति का हरण न करें और उन्हें केबल तथ्य ही दे तथा उनकी राय अपने माफिक गढ़ने से विरत रहें .उन्होंने पाठकों से भी आशा की थी कि वे अखबारों से राय उधर न लें और स्वतन्त्र चिंतन बनाये रखें .किन्तु अन्ना आन्दोलन में मीडिया विशेष कर इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपनी मर्यादा का उल्लंघन करके तथ्य परोसने की बजाय  खुद सरकार के खिलाफ आन्दोलन के संचालक की भूमिका में है.यदि मीडिया की नीयत सही है तो वह लोकपाल के दायरे में मीडिया और कोर्पोरेट घरानों को लाने पर चुप क्यों है ? क्या हजारे आन्दोलन के जरिये मीडिया भविष्य में सरकारों की ब्लैक मेलिंग की ताकत  प्रमाणित करना चाहता है ? 
                                                                                                              समय सापेक्ष