महात्मा गाँधी ने बार बार अपने संपादकीयों में इस बात पर बल दिया था कि संपादक पाठको की स्वतन्त्र चिंतन की प्रवृत्ति का हरण न करें और उन्हें केबल तथ्य ही दे तथा उनकी राय अपने माफिक गढ़ने से विरत रहें .उन्होंने पाठकों से भी आशा की थी कि वे अखबारों से राय उधर न लें और स्वतन्त्र चिंतन बनाये रखें .किन्तु अन्ना आन्दोलन में मीडिया विशेष कर इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपनी मर्यादा का उल्लंघन करके तथ्य परोसने की बजाय खुद सरकार के खिलाफ आन्दोलन के संचालक की भूमिका में है.यदि मीडिया की नीयत सही है तो वह लोकपाल के दायरे में मीडिया और कोर्पोरेट घरानों को लाने पर चुप क्यों है ? क्या हजारे आन्दोलन के जरिये मीडिया भविष्य में सरकारों की ब्लैक मेलिंग की ताकत प्रमाणित करना चाहता है ?
समय सापेक्ष
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